{Of all lies, art is the least untrue - Flaubert}



Tuesday, August 07, 2007

मंटो की कहानियाँ

इस सप्ताहांत मैं सआदत हसन मंटो की कुछ कहानिया पढ़ रह था। शिकागो library में हिंदी की किताबो का अच्छा संग्रह है। वहीँ मैंने एक किताब देखी, जिसका शीर्षक था - मंटो की यथाकथित विवादित कहानियाँ। इस संकलन में मंटो की सात कहानिया हें, जिनमें से छः पर अश्लीलता का मुकदमा चला था। मंटो सभी में बरी हो गए थे। संकलन के शुरुआत में मंटो का लिखा एक लेख है - मंटो अपनी नज़र में - जिसमे सआदत हसन, मंटो का हमजाद (जिन्न) बन कर , मंटो की पोल खोलता है, बताता है की मंटो अफ़साने कैसे लिखता था, और वोह एक नंबर का फ्रोड क्यों है, पर असल में वो कहता है की चाहे मंटो बुरा आदमी हो, उसे अव्वल दर्ज़ा उर्दू ना आती हो, पर वो अपनी कहानियो में वो ही दिखाता है जो वोह अपने आस पास देखता है।

मैं मंटो की कहानियो पर कुछ लिखने की सोच रह था पर उनपर तर्क वितर्क लिखना थोडा मुश्किल सा लगा , कहीँ सही शब्द नहीं मिले तो कही सही तरह से उन्हें बताने का कोई तरीका नहीं सुझा। मंटो की कहानियो में अश्लीलता केवल शब्दो तक है, पर उनके पीछे जो भाव छुपा है वोह बहुत संवेदनशील और इमानदार हें। मंटो की कहानियो को खुरदुरा कहा जा सकता है, उन में जिस भाषा और बोली का इस्तेमाल है, जिस तरह मानसिक और शारीरिक स्थिती के वर्णन को मिला दिया गया है, उस से एक विशेष प्रकार का अनुभव होता है, जो इन्सान के जिस्म से जुडा है और उसकी भावनाओं से भी, उसी तरह जिस तरह एक अच्छी कहानी दार्शनिक होकर भी मिटटी से जुडी रहती है। मंटो विभाजन के दुःख से कोई सस्ती सहनाभुती नहीं बटोरता , पर बड़े ही कम लफ्जो में उस क्रूरता को दर्शा देता है। बिल्कुल उसी तरह वोह किस्सी वेश्या को उसके काम से नहीं देखता, पर उसके इंसानी इच्छाओ पर चिन्तन करता है। मेरी नज़र में इस संकलन की सबसे बेहतरीन कहानी 'हतक' है, जिसमे हमारी नायिका सुगंधि एक ग्राहक के नापसंद किये जाने पर जिस पीड़ा और अपमान के गुजरती है, वो मंटो ने बहुत सही चित्रित किया है। जब सुगंधि , सेठ के जाने के बाद, अँधेरी सुनसान सड़क पर आधीरात में खडी होती है, तो मंटो ने उसके मन में आने वाले एक एक विचार को किस्सी रहस्य की तरह खोला है, जो अंत में उसकी नियति की और इशारा करता है। मंटो की एक और कहानी 'काली सलवार' में मंटो ने मन में चलने वाले विचारो और आस पास के वातावरण को यु बुन दिया है जैसे वास्तव में वो एक ही हो, और उसपर ये भी जाहिर कर दिया है की यह सब आज ऐसा इसलिये लग रह है, क्योंकि सोचने वाले के मन की स्तिथी आज ऐसी है। मैं और कुछ ज्यादा नहीं लिख पा रहा हूँ , तो अंत में मंटो की कहानी 'हतक' से यह अंश लिख रह हूँ, जो साफ साफ मंटो की छाप लिए हुये है।

वो रूपये जो उसने अपने शारीरिक परिश्रम के बदले दरोगा से वसूल किये थे, उसकी चुस्त और थूक से भारी चोली के नीचे से ऊपर उभरे हुये थे, कभी कभी सांस के उतार चढ़ाव से चादी के यह सिक्के खनकने लगते थे, तो उनकी खनखनाहट उसके दिल की बेमेल धडकानो में घुलमिल जाती , ऐसा मालूम होता की इन सिक्को की चांदी पिघल कर उसके दिल के ख़ून में टपक रही है।

मंटो की बहुचर्चित कहानी टोबा टेक सिंह आप हिंदी में यहाँ पढ़ सकते हें। यहाँ मंटो की पांच लघु कहानिया पढ़ सकते हें।

3 comments:

The sleepy activist said...

thank you for this write up. now i cannot resist reading manto anymore. and yes, very nicely written :)

Push. said...

sir maine pad li kuch stories and liked them too... aisa kuch likhye...there is one very famous hindi novel raag darbaari..padlo

anurag said...

SA, thanks

Push, Raag darbaari bahut time se to-read list mein hai.. will pick up soon :)