{Of all lies, art is the least untrue - Flaubert}



Thursday, March 15, 2007

नागार्जुन की तीन कवितायेँ...

जी हाँ , लिख रहा हूँ ...

जी हाँ, लिख रहा हूँ ...
बहुत कुछ ! बहोत बहोत !!
ढ़ेर ढ़ेर सा लिख रहा हूँ !
मगर , आप उसे पढ़ नहीं
पाओगे ... देख नहीं सकोगे
उसे आप !

दर असल बात यह है कि
इन दिनों अपनी लिखावट
आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ
नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की
तरह वो अगले कि क्षण
गुम हो जाती हैं
चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस
दो-चार सेकेंड तक ही
टिकती है ....
कभी-कभार ही अपनी इस
लिखावट को कागज़ पर
नोट कर पता हूँ
स्पन्दनशील संवेदन की
क्षण-भंगुर लड़ियाँ
सहेजकर उन्हें और तक
पहुंचाना !
बाप रे , कितना मुश्किल है !
आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -
वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे,
मन-ही-मन तो हसोंगे ही,
की भला यह भी कोई
काम हुआ , की अनाप-
शनाप ख़यालों की
महीन लफ्फाजी ही
करता चले कोई -
यह भी कोई काम हुआ भला !


घिन तो नहीं आती है !

पूरी स्पीड में है ट्राम
खाती है दचके पै दचके
सटता है बदन से बदन-
पसीने से लथपथ ।
छूती है निगाहों को
कत्थई दांतों की मोटी मुस्कान
बेतरतीब मूँछों की थिरकन
सच सच बतलाओ
घिन तो नहीं आती है ?
जी तो नहीं कढता है ?

कुली मजदूर हैं
बोझा ढोते हैं , खींचते हैं ठेला
धूल धुआँ भाफ से पड़ता है साबका
थके मांदे जहाँ तहां हो जाते हैं ढ़ेर
सपने में भी सुनते हैं धरती की धड़कन
आकर ट्राम के अन्दर पिछले डब्बे मैं
बैठ गए हैं इधर उधर तुमसे सट कर
आपस मैं उनकी बतकही
सच सच बतलाओ
जी तो नहीं कढता है ?
घिन तो नहीं आती है ?

दूध सा धुला सादा लिबास है तुम्हारा
निकले हो शायद चौरंगी की हवा खाने
बैठना है पंखे के नीचे , अगले डिब्बे मैं
ये तो बस इसी तरह
लगायेंगे ठहाके, सुरती फाँकेंगे
भरे मुँह बातें करेंगे अपने देस कोस की
सच सच बतलाओ
अखरती तो नहीं इनकी सोहबत ?
जी तो नहीं कढता है ?
घिन तो नहीं आती है ?

कर दो वमन !

प्रभु तुम कर दो वमन !
होगा मेरी क्षुधा का शमन !!

स्वीकृति हो करुणामय,
अजीर्ण अन्न भोजी
अपंगो का नमन !

आते रहे यों ही यम की जम्हायियों के झोंके
होने न पाए हरा यह चमन
प्रभु तुम कर दो वमन !

मार दें भीतर का भाप
उमगती दूबों का आवागमन
बुझ जाए तुम्हारी आंतों की गैस से
हिंद की धरती का मन
प्रभु तुम कर दो वमन !
होगा मेरी क्षुधा का शमन !!

5 comments:

Alok said...

great! these three are my favourites too.

first one is really good... thinking and writing poems as work! the other two are very good too. thanks for putting these up here.

Ram said...

Heeeeeeeeeeeyyyyyyyy!! Ballee ballee...!!

anurag said...

alok, thanks... there are lots of other poems that are very good, but very long too... ;)

Ram, balle balle :)

Pratik Pandey said...

हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। वाक़ई नागार्जुन गूढ़ बातों को कितने सरल शब्दों में कह देते हैं।

HindiBlogs.com

anurag said...

प्रतीक जी, इधर आने के लिए धन्यवाद ....

मुझे नागार्जुन की कुछ और कवितायें भी बहुत पसंद हें, पर लंबी होने की वजह से आलस कर गया, अगली बार कुछ और कवितायें पोस्ट करूंगा।